kabhee kabhee (कभी कभी )
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मेघों के आँचल से चन्दा, मुझे बुलाता रह – रह कर
मंद पवन का झोंका मुझको , ले जाता अनजान डगर
मुझे पता है ‘जय’ बैठा है , कहीं किसी सरिता के तट पर
देख रहा है चन्द्र-बिम्ब में , मुझे अभी प्रति लहर – लहर
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