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भारत है अंतर्मन में

kabhee kabhee (कभी कभी )
kabhee kabhee (कभी कभी )
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खूब सता लें, खून बहा लें, देश प्रदेश के आँगन में

लेकिन यह हम भूल न जाएँ, भारत है अंतर्मन में

गर्व न यदि कर पाए हम, भारत का सुत बनने पर

तो क्या रखा है इस जग में, क्या रखा है जीवन में

हम स्वतंत्र हैं कुछ कहने को, खाने पीने रहने को भी

तो फिर क्यों हम बंधे हुए हैं, जाति-पाँति के बंधन में

आओ हम सब गले मिले, झूम झूम के नाचे गाएँ

वर्षा वाले बादल जैसे, मिल जाते ‘जय’ सावन में

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